DEVUTHNI EKADASHI 2024


 Devuthni  Ekadashi: महत्व, पूजन विधि, एवं धार्मिक मान्यताएं

भारत में अनेक त्यौहार और व्रत धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माने जाते हैं। देव उठनी एकादशी का पर्व उन्हीं विशेष त्यौहारों में से एक है, जो न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि लोगों के मन में विशेष स्थान भी रखता है। इसे देवोत्थान एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी, या देव उठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के चार महीने के योग निद्रा से जागृत होने की मान्यता है, जो वर्षा ऋतु के चार महीनों के बाद आता है। आइए, इस पर्व की महत्ता, पूजन विधि और उससे जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में विस्तार से जानें।

देव उठनी एकादशी का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में देव उठनी एकादशी का विशेष महत्व है। चातुर्मास, जो कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होता है, इस दिन समाप्त होता है। चातुर्मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं और देव उठनी एकादशी पर जागते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन से ही समस्त मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत आदि को करने का शुभ समय आरंभ होता है।

देव उठनी एकादशी को 'प्रबोधिनी' इसीलिए कहा गया है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु प्रबुद्ध होते हैं, यानी निद्रा से जागते हैं। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु विश्राम में होते हैं, तब कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते, ताकि उनके विश्राम में बाधा न हो। लेकिन उनके जागने के बाद देवताओं को उनके आशीर्वाद और शक्तियों की प्राप्ति होती है और इस कारण से ये पर्व हर किसी के लिए अत्यंत हर्षोल्लास का होता है।

पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक समय जब असुरों का अत्याचार बढ़ गया था, तो देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे उन्हें राहत देंगे और चार महीने तक निद्रा में चले गए। इस समय को चातुर्मास कहा गया। इस दौरान, देवताओं ने अधर्मी और असुर प्रवृत्तियों से बचने के लिए साधना और तपस्या की। चातुर्मास के चार महीने पूर्ण होने पर भगवान विष्णु ने देव उठनी एकादशी के दिन जाग कर देवताओं को अभयदान दिया। तभी से यह पर्व प्रत्येक वर्ष श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार, देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। भगवान विष्णु ने इस दिन वराह रूप धारण कर उनकी तपस्या को पूर्ण कर उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान की। इसलिए इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।

देव उठनी एकादशी का महत्व और धार्मिक प्रभाव

देव उठनी एकादशी केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव डालती है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य लोगों को पुण्य और धर्म का रास्ता दिखाना है। यह दिन व्यक्ति के जीवन में शुभता और समृद्धि का संचार करता है और उसके कर्तव्यों को याद दिलाता है। इस व्रत को करने से न केवल मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि उन्हें जीवन में धर्म और सत्कर्मों का पालन करने की प्रेरणा भी मिलती है।

देव उठनी एकादशी व्रत का विशेष प्रभाव यह है कि इसके माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकता है और भगवान विष्णु के आशीर्वाद से अपना जीवन सफल बना सकता है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त इस दिन सच्चे मन से व्रत करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और उनके सारे कष्ट दूर होते हैं।

देव उठनी एकादशी की पूजन विधि

देव उठनी एकादशी का व्रत और पूजन विधि अत्यंत सरल है। इस दिन प्रातः काल स्नान करके साफ वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु के चरणों में धूप, दीप, फूल, फल और नैवेद्य अर्पित करें। साथ ही, व्रत कथा पढ़ें या सुनें और विशेष रूप से विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व है, क्योंकि देवी लक्ष्मी भी श्रीहरि के साथ जागरण में शामिल होती हैं।

व्रत की विधि इस प्रकार है:

  1. स्नान और शुद्धता: व्रत के दिन प्रातः काल स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण करें। व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।

  2. व्रत कथा सुनें या पढ़ें: देव उठनी एकादशी की कथा सुनना या पढ़ना अनिवार्य होता है। इससे भगवान की लीला और उनके महत्व को समझने का अवसर मिलता है।

  3. भगवान विष्णु का पूजन: भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने धूप, दीप, अक्षत, पुष्प, चंदन, तुलसी पत्र, नारियल और मिठाई अर्पित करें। श्रीहरि की आरती गाएं और विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तुति का पाठ करें।

  4. रात्रि जागरण: कई भक्त इस दिन रात्रि जागरण करते हैं और भगवान विष्णु के नाम का जप करते हैं। रात्रि में जागरण करने का विशेष फल बताया गया है।

  5. दान और आशीर्वाद: पूजा के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान करें। दान का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे समाज कल्याण के साथ जोड़ा गया है।

तुलसी विवाह का आयोजन

देव उठनी एकादशी के साथ ही तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन तुलसी माता और भगवान विष्णु का विवाह सम्पन्न किया जाता है। इसे हिंदू समाज में विशेष रूप से महत्व दिया जाता है, क्योंकि तुलसी को भगवान विष्णु की परम भक्त माना गया है। यह विवाह मुख्यतः भक्तों द्वारा अपने घरों में या मंदिरों में आयोजित किया जाता है। तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाकर भगवान विष्णु के साथ विवाह करवाया जाता है। इस आयोजन से भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

व्रत का पारण

देव उठनी एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। पारण के समय श्रद्धालु भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का समापन करते हैं। पारण करते समय एकादशी के पुण्य को बनाए रखने के लिए विशेष रूप से सात्विक भोजन करना चाहिए।

उपसंहार

देव उठनी एकादशी हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो भक्तों को धर्म, संस्कार, और आस्था का मार्ग दिखाता है। इस दिन व्रत, पूजा, और दान के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का संचार कर सकता है। देव उठनी एकादशी का पर्व जीवन में सकारात्मकता का संदेश देता है और हमें सिखाता है कि धर्म का पालन करते हुए कैसे एक सरल और सच्चा जीवन जिया जा सकता ह

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