शहीदी दिवस: सिखों के नौवें गुरु का शहीदी दिवस
सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी, का शहीदी दिवस इतिहास के महान बलिदानों में से एक के रूप में याद किया जाता है। यह दिन मानवता, धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उनके अद्वितीय बलिदान की स्मृति को समर्पित है। गुरु तेग बहादुर जी ने न केवल सिख समुदाय बल्कि समूचे भारतीय समाज के लिए सत्य, न्याय और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा का संदेश दिया।
गुरु तेग बहादुर जी का जीवन परिचय
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। वे गुरु हरगोबिंद साहिब जी (सिखों के छठे गुरु) और माता नानकी जी के पुत्र थे। उनका प्रारंभिक नाम त्यागमल था, लेकिन उनकी वीरता और त्याग के कारण उन्हें "तेग बहादुर" नाम दिया गया।
गुरु जी बचपन से ही धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। वे युद्ध कला और आध्यात्मिक शिक्षा में निपुण थे। उनके द्वारा रचित बाणी (श्लोक) श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है, जो मानवता, धैर्य, सहनशीलता और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
गुरु साहिब की शहीदी दिवस, जिसे हम शहीदी पर्व भी कहते हैं, सिख धर्म और भारतीय इतिहास में एक विशेष महत्व रखता है। यह दिन गुरु तेग बहादुर जी की शहादत की स्मृति में मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर जी, सिख धर्म के नौवें गुरु, ने मानवता, धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। उनका जीवन और शहादत हमें त्याग, सहनशीलता और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
गुरु तेग बहादुर जी का जीवन परिचय
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनके पिता गुरु हरगोबिंद साहिब जी, सिख धर्म के छठे गुरु, और माता नानकी जी थीं। बचपन से ही गुरु तेग बहादुर जी में आध्यात्मिकता और वीरता के गुण थे। वे एक महान योद्धा, विद्वान और कवि थे। उनकी कविताएँ और शिक्षाएँ आज भी सिखों के पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहीत हैं।
गुरु जी ने युवावस्था में ही खुद को आत्मचिंतन, प्रार्थना और मानव सेवा के लिए समर्पित कर दिया। 1664 में, गुरु हरकृष्ण जी के बाद, उन्हें सिख धर्म के नौवें गुरु के रूप में नियुक्त किया गया। गुरु तेग बहादुर जी ने अपने जीवनकाल में कई स्थानों की यात्रा की और लोगों को सच्चाई, मानवता और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
मुगल साम्राज्य और धार्मिक उत्पीड़न
गुरु तेग बहादुर जी के समय में मुगल सम्राट औरंगज़ेब भारत पर शासन कर रहे थे। औरंगज़ेब ने धार्मिक असहिष्णुता और जबरन इस्लाम धर्मांतरण की नीति अपनाई थी। विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए जा रहे थे। उनके सामने यह शर्त रखी गई थी कि या तो वे इस्लाम स्वीकार करें या अपने जीवन का बलिदान दें।
कश्मीरी पंडितों ने अपनी रक्षा और धर्म की स्वतंत्रता के लिए गुरु तेग बहादुर जी से सहायता मांगी। गुरु जी ने उनकी व्यथा को समझा और अपने अनुयायियों को धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रेरित किया।
गुरु जी की शहादत
गुरु तेग बहादुर जी ने औरंगज़ेब को स्पष्ट संदेश दिया कि यदि वे गुरु जी को इस्लाम धर्मांतरण के लिए मना पाए, तो कश्मीरी पंडित खुद इस्लाम अपना लेंगे। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए औरंगज़ेब ने गुरु जी को दिल्ली बुलाया। गुरु तेग बहादुर जी ने अपने तीन प्रमुख अनुयायियों - भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला जी के साथ दिल्ली का रुख किया।
दिल्ली पहुँचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य किया गया। जब गुरु जी ने इसे स्वीकार करने से इंकार किया, तो उनके अनुयायियों को अमानवीय यातनाएँ दी गईं। भाई मती दास को आरा से चीर दिया गया, भाई सती दास को कपास में लपेटकर आग लगा दी गई और भाई दयाला जी को खौलते तेल में डाल दिया गया। इन यातनाओं के बावजूद, गुरु तेग बहादुर जी और उनके अनुयायी अपनी आस्था पर अडिग रहे।
आखिरकार, 24 नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर जी को चांदनी चौक, दिल्ली में सार्वजनिक रूप से शहीद कर दिया गया। उनकी शहादत ने सिख धर्म और भारतीय इतिहास में धर्म और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का एक नया अध्याय लिखा।
शहीदी दिवस का महत्व
गुरु तेग बहादुर जी की शहादत न केवल सिख धर्म के लिए बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने यह साबित किया कि धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं है। उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, सत्य और न्याय के मार्ग पर डटे रहना चाहिए।
उनकी शिक्षाओं का प्रभाव
गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षाएँ आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं। उन्होंने सिखाया कि मानवता की सेवा, धार्मिक सहिष्णुता और आध्यात्मिकता ही सच्चा धर्म है। उनकी बाणी हमें जीवन के हर पहलू में सादगी, धैर्य और शांति का पालन करने की प्रेरणा देती है। उनके उपदेश हमें यह याद दिलाते हैं कि हर व्यक्ति को अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार जीने का अधिकार है।
समर्पण और प्रेरणा
गुरु तेग बहादुर जी की शहादत का दिन हमें उनके बलिदान और साहस की याद दिलाता है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में उन मूल्यों को अपनाएँ जिनके लिए उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया। धर्म, सत्य, और न्याय के प्रति उनका समर्पण हमारे लिए आदर्श है।
शहीदी दिवस का आयोजन
हर साल गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी दिवस पर गुरुद्वारों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लोग कीर्तन, अरदास और लंगर के माध्यम से उनकी याद में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह दिन सिख समुदाय के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोगों को भी जोड़ता है और भाईचारे का संदेश देता है।
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी न केवल सिख धर्म का गौरव है, बल्कि यह भारतीय इतिहास की एक अमूल्य धरोहर भी है। उनका बलिदान हमें सिखाता है कि धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने का साहस होना चाहिए। उनकी शिक्षाएँ और शहादत हमें जीवन में सच्चाई और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।
गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान का स्मरण करते हुए, हमें उनके दिखाए गए मार्ग पर चलने और समाज में प्रेम, सहिष्णुता और भाईचारे को बढ़ावा देने का संकल्प लेना चाहिए। उनकी शहादत हमें यह विश्वास दिलाती है कि सच्चाई और न्याय की जीत हमेशा होती है।
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