"वंदे मातरम्" को राष्ट्रीय गीत का दर्जा – 23 मार्च 2006 का ऐतिहासिक दिन
भूमिका
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई नारे, गीत और प्रतीक महत्वपूर्ण रहे हैं, लेकिन उनमें से एक जिसने जनमानस को सबसे अधिक प्रेरित किया, वह है "वंदे मातरम्"। यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक भावनात्मक शक्ति थी, जिसने हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया। 23 मार्च 2006 को इस गीत को आधिकारिक तौर पर भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया गया। यह निर्णय भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, जिसने इस महान रचना को संवैधानिक मान्यता प्रदान की।
"वंदे मातरम्" का इतिहास
"वंदे मातरम्" की उत्पत्ति बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1870 के दशक में हुई थी। इसे उनकी प्रसिद्ध रचना "आनंदमठ" में शामिल किया गया था, जो 1882 में प्रकाशित हुई थी। इस गीत में मातृभूमि की महिमा का गुणगान किया गया है और यह भारत माता की आराधना का प्रतीक बन गया।
गीत की रचना और प्रेरणा
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इस गीत को बंगाल के स्वतंत्रता संग्राम और मातृभूमि के प्रति प्रेम को दर्शाने के लिए लिखा था।
"वंदे मातरम्" का अर्थ है – "मां, मैं तुम्हें नमन करता हूँ", जो देशभक्ति की भावना को दर्शाता है।
इस गीत की पहली दो पंक्तियाँ संस्कृत में हैं, जबकि बाकी हिस्सा बंगाली भाषा में लिखा गया था।
आनंदमठ उपन्यास में "वंदे मातरम्"
यह गीत "आनंदमठ" उपन्यास का हिस्सा था, जो बंगाल के सन्यासी विद्रोह (1770) की पृष्ठभूमि पर आधारित था।
इस उपन्यास ने भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को अत्यधिक प्रेरित किया और "वंदे मातरम्" क्रांतिकारियों का युद्धघोष बन गया।
स्वतंत्रता संग्राम में "वंदे मातरम्" की भूमिका
1. क्रांतिकारियों का प्रेरणास्त्रोत
1905 के बंग-भंग आंदोलन में इस गीत को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान गाया गया।
लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष जैसे नेता इसे प्रेरणा के रूप में देखते थे।
1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भी इस गीत को स्वतंत्रता सेनानियों ने गाया।
2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में स्वीकृति
1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में इसे पहली बार गाया।
1905 के स्वदेशी आंदोलन में इस गीत को व्यापक रूप से अपनाया गया।
3. ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंध
ब्रिटिश सरकार ने इस गीत को विद्रोह भड़काने वाला बताते हुए सार्वजनिक स्थलों पर गाने पर रोक लगा दी थी।
इसके बावजूद, क्रांतिकारियों ने इसे गाना जारी रखा और यह भारत की आजादी की लड़ाई का प्रतीक बन गया।
"वंदे मातरम्" को राष्ट्रीय गीत का दर्जा – 23 मार्च 2006
1. राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता
23 मार्च 2006 को भारतीय संसद ने "वंदे मातरम्" को राष्ट्रीय गीत घोषित किया।
हालांकि, संविधान सभा में पहले ही इसे 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान "जन गण मन" के साथ समान स्तर पर रखा गया था।
इसके बावजूद, इसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता देने की प्रक्रिया 2006 में पूरी हुई।
2. संसद में चर्चा और निर्णय
यह विषय कई वर्षों से चर्चा में था क्योंकि कुछ लोग इसे भारत का राष्ट्रगान बनाने की मांग कर रहे थे।
लेकिन यह तय किया गया कि "जन गण मन" राष्ट्रगान रहेगा और "वंदे मातरम्" को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया जाएगा।
यह निर्णय संविधान की भावना और सभी समुदायों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया।
"वंदे मातरम्" की महत्वपूर्ण विशेषताएँ
1. आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
यह गीत भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है।
इसमें माँ दुर्गा की उपमा के रूप में भारत माता का चित्रण किया गया है।
2. भारतीय सेना और देशभक्ति के प्रतीक के रूप में उपयोग
यह गीत भारतीय सेना और विभिन्न पुलिस बलों के समारोहों में गाया जाता है।
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर भी इसे गाया जाता है।
3. गीत की धुन और संगीत
कई प्रसिद्ध संगीतकारों ने इस गीत को संगीतबद्ध किया है।
ए. आर. रहमान द्वारा "वंदे मातरम्" को 1997 में एक नए रूप में प्रस्तुत किया गया, जो बेहद लोकप्रिय हुआ।
"वंदे मातरम्" से जुड़े विवाद
हालांकि "वंदे मातरम्" भारत की एकता और स्वतंत्रता का प्रतीक है, लेकिन इसे लेकर कई बार विवाद भी हुए हैं।
1. कुछ समुदायों की आपत्तियाँ
कुछ धार्मिक समुदायों ने इस गीत के कुछ हिस्सों पर आपत्ति जताई, क्योंकि इसमें भारत माता को देवी के रूप में दर्शाया गया है।
इसे लेकर कई बहसें चलीं, लेकिन सरकार ने स्पष्ट किया कि यह देशभक्ति का प्रतीक मात्र है और किसी धर्म विशेष से जुड़ा नहीं है।
2. अनिवार्यता को लेकर विवाद
कुछ संगठनों ने इसे स्कूलों और सरकारी संस्थानों में अनिवार्य रूप से गाने की मांग की।
सरकार ने यह निर्णय लिया कि "वंदे मातरम्" को अनिवार्य नहीं किया जाएगा, लेकिन इसे राष्ट्रीय सम्मान दिया जाएगा।
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निष्कर्ष
"वंदे मातरम्" भारत के स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा रहा है। 23 मार्च 2006 को इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता मिलने से इसकी महत्ता और बढ़ गई। यह गीत न केवल भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है, बल्कि यह हर भारतीय के हृदय में देशभक्ति की भावना जागृत करता है।
आज भी जब यह गीत गूंजता है, तो हर भारतीय का हृदय गर्व से भर जाता है और देश के प्रति प्रेम की भावना जाग उठती है। "वंदे मातरम्" सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की आवाज़ है।
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