International Day of Sign Languages 2025: मानवाधिकार और Sign Language का गहरा संबंध

International Day of Sign Languages 2025:


✨ परिचय 

भाषा चाहे कोई भी हो हर किसी के लिए बहुत मायने रखती है,भाषा केवल शब्दों का माध्यम नहीं होती, बल्कि यह भावनाओं, विचारों और संस्कृति की आत्मा होती है। परंतु जब किसी को सुनने और बोलने की क्षमता नहीं होती, तब उनके लिए सांकेतिक भाषा (Sign Language) ही सबसे बड़ा सहारा बनती है। हर व्यक्ति को संवाद करने का अधिकार है। इसी महत्वपूर्ण संदेश को फैलाने और दुनिया को बधिर समुदाय की आवाज़ सुनाने के लिए हर साल 23 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (International Day of Sign Languages) मनाया जाता है।

यह दिन न केवल बधिर लोगों के लिए समान अधिकारों की मांग करता है, बल्कि यह पूरी दुनिया को याद दिलाता है कि भाषा चाहे बोली हो या सांकेतिक, उसका सम्मान करना हर किसी का कर्तव्य है।

📜 इतिहास और स्थापना

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) द्वारा 2017 में की गई थी।

पहली बार यह दिन 23 सितंबर 2018 को मनाया गया।

23 सितंबर का चयन इसलिए किया गया क्योंकि इसी दिन World Federation of the Deaf (WFD) की स्थापना 1951 में हुई थी।

WFD एक वैश्विक संगठन है जो दुनिया भर के बधिर लोगों के अधिकारों और सांकेतिक भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए काम करता है

🎯 2025 का थीम

International Day of Sign Languages 2025:


संयुक्त राष्ट्र हर साल इस दिन के लिए एक विशेष थीम (Theme) तय करता है, ताकि बधिर समुदाय की समस्याओं, समाधान और सामाजिक महत्व पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।

2025 की थीम: “No Human Rights Without Sign Language Rights”

इस वर्ष का थीम इस बात पर जोर देता है कि सांकेतिक भाषा के अधिकार मानवाधिकारों का हिस्सा हैं। इसका मतलब है कि अगर किसी व्यक्ति को सुनने या बोलने में कठिनाई है, तो उसे समान अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और समाज में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सांकेतिक भाषा का अधिकार होना चाहिए।

“No Human Rights Without Sign Language Rights” थीम यह स्पष्ट करती है कि सांकेतिक भाषा के बिना बधिर लोगों के मानवाधिकार अधूरे हैं। इसलिए इस दिन को मनाना न केवल जागरूकता बढ़ाने के लिए है, बल्कि समाज में समान अवसर, सम्मान और समावेशिता लाने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

🙌 सांकेतिक भाषा का महत्व

International Day of Sign Languages 2025:

1. संवाद का सेतु – यह बधिर और श्रवणक्षम लोगों के बीच की खाई को पाटती है।

2. शिक्षा का साधन – बधिर बच्चे शिक्षा तभी सही ढंग से प्राप्त कर सकते हैं जब उन्हें सांकेतिक भाषा उपलब्ध हो।

3. रोज़गार के अवसर – यदि कंपनियों में सांकेतिक भाषा को अपनाया जाए तो बधिर लोगों को नौकरी के अवसर मिल सकते हैं।

4. सांस्कृतिक पहचान – हर सांकेतिक भाषा अपने समुदाय की संस्कृति और पहचान को दर्शाती है।

🌍 दुनिया में सांकेतिक भाषाओं की स्थिति

पूरी दुनिया में लगभग 7 करोड़ से अधिक लोग बधिर समुदाय से संबंधित हैं।

Ethnologue के अनुसार, दुनिया में करीब 300 से अधिक सांकेतिक भाषाएँ मौजूद हैं।

परंतु इन भाषाओं को वैध मान्यता और समर्थन हर जगह समान रूप से नहीं मिलता।

🇮🇳 भारत में सांकेतिक भाषा की स्थिति

भारत में करीब 1.8 करोड़ से अधिक लोग सुनने की समस्या से जूझ रहे हैं।

भारत में उपयोग की जाने वाली प्रमुख सांकेतिक भाषा है Indian Sign Language (ISL)।

1986 में Ali Yavar Jung National Institute of Speech and Hearing Disabilities (AYJNISHD) की स्थापना की गई, जिसने ISL को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई।

2015 में Indian Sign Language Research and Training Center (ISLRTC) की स्थापना हुई।

सरकार अब इसे शिक्षा और सरकारी कार्यक्रमों में शामिल करने पर काम कर रही है।

👥 सांकेतिक भाषा का उपयोग कौन लोग करते हैं?

सांकेतिक भाषा (Sign Language) का उपयोग मुख्य रूप से बधिर और श्रवण-दिव्यांग लोग करते हैं, जिनके लिए यह संवाद का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। इसके अलावा, वे लोग भी इसका प्रयोग करते हैं जो सुनने में कठिनाई (hearing impaired) से पीड़ित हैं, या जिनके परिवार, शिक्षक और मित्र उन्हें समझने के लिए Sign Language सीखते हैं। आजकल कई देशों में स्पेशल एजुकेशन शिक्षक, दुभाषिए (interpreters), स्वास्थ्य सेवा प्रदाता और सामाजिक कार्यकर्ता भी सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल करते हैं ताकि वे बधिर समुदाय से सीधे जुड़ सकें। यानी, यह भाषा केवल बधिर लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि हर वह व्यक्ति इसका उपयोग करता है जो उनके साथ प्रभावी संवाद करना चाहता है।

📊 आँकड़े और तथ्य

UNESCO के अनुसार, अगर सांकेतिक भाषाओं को शिक्षा में शामिल किया जाए तो बधिर बच्चों की शिक्षा का स्तर कई गुना बढ़ सकता है।

भारत में केवल 300 से 400 पेशेवर दुभाषिए (interpreters) ही उपलब्ध हैं, जबकि आवश्यकता लाखों की है।

सोशल मीडिया और तकनीक के कारण अब ISL सीखने और सिखाने के लिए कई ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध हो गए हैं।

🏛️ संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक पहल

संयुक्त राष्ट्र और World Federation of the Deaf लगातार यह मांग करते हैं कि:

हर देश अपनी राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा को मान्यता दे।

शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय प्रणाली में दुभाषियों को नियुक्त किया जाए।

टीवी और डिजिटल मीडिया में सांकेतिक भाषा को अनिवार्य बनाया जाए।

🌐 चुनौतियाँ

1. मान्यता की कमी – कई देशों में सांकेतिक भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा नहीं मिला है।

2. शिक्षा में बाधा – बधिर बच्चों को शिक्षा में कठिनाइयाँ आती हैं क्योंकि शिक्षक सांकेतिक भाषा में प्रशिक्षित नहीं होते।

3. सामाजिक भेदभाव – अक्सर बधिर लोगों को “अक्षम” समझा जाता है।

4. रोज़गार के अवसरों की कमी – कंपनियाँ सांकेतिक भाषा को नहीं अपनातीं, जिससे रोजगार सीमित हो जाता है।

💡 समाधान और सुझाव

स्कूलों और कॉलेजों में ISL और अन्य सांकेतिक भाषाओं की पढ़ाई होनी चाहिए।

कंपनियों में सांकेतिक भाषा दुभाषियों की नियुक्ति अनिवार्य हो।

मीडिया चैनलों पर समाचार और कार्यक्रम सांकेतिक भाषा में भी प्रसारित हों।

लोगों को सांकेतिक भाषा सिखाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाए जाएँ।

🙏 समाज में योगदान

सांकेतिक भाषा केवल बधिर लोगों के लिए नहीं, बल्कि यह पूरी मानवता को जोड़ने का माध्यम है। अगर समाज इस भाषा को सीखे और अपनाए, तो हम सचमुच एक समावेशी और समान अवसर वाला विश्व बना सकते हैं।

❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q1. अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस कब मनाया जाता है?

👉 हर साल 23 सितंबर को।


Q2. इस दिन को मनाने का उद्देश्य क्या है?

👉 बधिर समुदाय की सांकेतिक भाषा को बढ़ावा देना और उनके अधिकारों की रक्षा करना।


Q3. दुनिया में कितनी सांकेतिक भाषाएँ हैं?

👉 लगभग 300 से अधिक।


Q4. भारत में कौन-सी सांकेतिक भाषा उपयोग होती है?

👉 Indian Sign Language (ISL)।


Q5. क्या सांकेतिक भाषा सीखना आसान है?

👉 हाँ, अगर सही प्रशिक्षण मिले तो यह किसी भी भाषा की तरह सीखी जा सकती है।

✅ निष्कर्ष

International Day of Sign Languages हमें यह याद दिलाता है कि भाषा केवल सुनने और बोलने तक सीमित नहीं है। यह संवाद और सम्मान का अधिकार है, जो हर व्यक्ति को मिलना चाहिए। अगर हम सभी सांकेतिक भाषा का महत्व समझें और इसे अपनाएँ, तो समाज में बधिर और श्रवणक्षम लोगों के बीच कोई दूरी नहीं रहेगी।

👉  आइए संकल्प लें कि हम सांकेतिक भाषा को अपनाएँ और समावेशी समाज का निर्माण करें।

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